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Saturday, May 2, 2020

Ek murtikar aur ush ke beta ki kahani

एक गांव में एक मूर्तिकार रहा करता था वह काफी खूबसूरत मूर्ति बनाया करता था और वो इस काम से अच्छा कमा लिया करता था उसे एक बेटा हुआ उस बच्चे ने बचपन से ही मूर्तियां बनानी शुरू कर दी बेटा भी बहुत अच्छी मूर्तियां बनाया करता था बाप अपने बेटे की कामयाबी पर खुश होता था  लेकिन हर बार बेटे की बनाई हुई मूर्तियों में कोई न कोई कमी निकलता था और कहता था बहुत अच्छा काम किया है अगली बार और अच्छे तरीके से करना बेटा भी कोई शिकायत नहीं करता था और अपने बाप की सलाह पर अमल करते हुए मूर्तियों को और बेहतर करता रहा इस लगातार सुधार की वजह से बेटे की मूर्तियां बाप की मूर्तियों से भी अच्छी बनने लगी और ऐसा भी टाइम आ गया कि लोग बेटे की मूर्तियों को अच्छा पैसा देकर खरीदने लगे जबकि बाप की मूर्तियां उसकी पहली बारी कीमत पर ही बिकती रही बाप अभी भी बेटे की मूर्तियों में कमियां निकालते रहा लेकिन बेटे को अब अच्छा नहीं लगता और वो बिना कमियों के उनको एक्सेप्ट करता रहा फिर भी अपनी मूर्तियों में सुधार करता एक टाइम ऐसा भी आया की बेटे  के सब्र ने जवाब दे दिया बात जब कमियां निकाल रहा था तो बेटे बोला आप तो ऐसा कहते हैं जैसे कि आप तो बहुत बड़े मूर्तिकार हैं अगर आपको इतनी ही समझ होती तो आप की मूर्ति इतनी कम कीमत में क्यों बिकती मुझे नहीं लगता कि आप कि मुझे सलाह लेने की जरूरत है मेरी मूर्तियां पर्फेक्ट है बाप ने बेटे की यह बात सुनी  तो बेटे को सुला देना और उस की मूर्तियों में कमियां निकालना बंद कर दिया कुछ महीने तो वो लड़का खुश रहा लेकिन फिर उसने नोटिस किया लेकिन लोग अब उसकी मूर्तियों की इतनी तारीफ नहीं करते जितनी कि पहले किया करते थे लेकिन आप उस की मूर्तियों के दाम बढ़ने कम हो गए शुरू में तो बैठे को कुछ समझ में नहीं आया लेकिन फिर वह अपने बाप के पास गया और उसे इस समस्या के बारे में बताएं बाप ने बेटे को बहुत शांति से सुना  जैसे कि उसे इस समस्या का पहले से ही पता हो और एक दिन ऐसा भी आएगा बेटे ने भी इस बात को नोटिस किया और उसने पूछा क्या आप जानते थे ऐसा भी होगा बाप ने कहा हां क्योंकि आज से  कई साल पहले ऐसे हालात से टकराया था तो बेटे ने सवाल किया आपने मुझे समझा है क्यों नहीं था बाप ने जवाब दिया क्योंकि तुम समझना नहीं चाहते थे क्योंकि मैं जानता हूं कि तुम्हारी जैसी अच्छी मूर्तियां मैं नहीं बनाना  जानता मैं यह भी जानता हूं कि मूर्तियों के बारे में मेरी सलाह गलत हो और ऐसा भी है कि मेरी सलाह की वजह से और तुम्हारी मूर्ति बेहतर बनी हो लेकिन जब मैं तुम्हारी मूर्तियों में कमियां दिखाता था जब तुम अपनी बनाई हुई मूर्तियों से सेटिस्फाई नहीं होते थे तुम खुद को बेहतर करने की कोशिश करते थे और तुम वही बेहतर होने की कोशिश कामयाबी का कारण था लेकिन तुम अपने काम से जिस दिन सेटिस्फाई होते और तुमने यह भी जान लिया कि इसमें और बेहतर होने की तुम्हारी ग्रोथ भी रुक गई लोग तुम से हमेशा बेहतर की उम्मीद करते हैं और यही कारण है कि अब तुमसे तुम्हारी मूर्तियों की तारीफ नहीं होती ना ही उनके लिए तुम्हारे पैसे मिलते हैं बेटा थोड़ी देर चुप रहा फिर उसने सवाल किया तो अब मुझे क्या करना चाहिए बाप ने एक लाइन में जवाब दिया अनसेटिस्फाइड होना सीख लो मान लो तुम में बेहतर होने की गुंजाइश है  यही बात तुम्हें हमेशा आगे होने के लिए बेहतर  गुंजाइश करेगी तुम्हें हमेशा बेहतर बनाती रहेगी

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